Class 9 Hindi chapter 2 question answer Bihar board 

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1.नालंदा की वाणी एशिया महाद्वीप में पर्वत और समुद्रों के उस पार तक फैल गई थी।” इस वाक्य का आशय स्पष्ट कीजिए।

उत्तर-

नालंदा में ज्ञान-साधना के सुरभित पुष्प खिले हुए थे। एशिया महाद्वीप के विस्तृत भू-भाग में विद्या-संबंधी सूत्र भी उसके साथ जुड़े हुए थे। ज्ञान के क्षेत्र में देश और जातियों के भेद लुप्त हो जाते हैं। इन्हीं सब कारणों के कारण उपर्युक्त बातें कही गयीं हैं।

 

प्रश्न 2.

मगध की प्राचीन राजधानी का नाम क्या था और वह कहाँ अवस्थित थी?

उत्तर-

मगध की प्राचीन राजधानी का नाम राजगृह था और वह पाँच पर्वतों के । मध्य में बसी हुई गिरिब्रज या राजगृह नाम से प्रसिद्ध थी।

 

प्रश्न 3.

बुद्ध के समय नालंदा में क्या था?

उत्तर-

बुद्ध के समय नालंदा के गाँव में प्रवाजिकों का आम्रवन था।

 

प्रश्न 4.

महावीर और मेखलिपुत्त गोसाल की भेंट किस उपग्राम में हुई थी?

उत्तर-

जैन-ग्रंथों के अनुसार नालंदा के उपग्राम वाहिरिक में महावीर और मेखलिपुत्र की भेंट हुई थी।

 

प्रश्न 5.

महावीर ने नालंदा में कितने दिनों का वर्षावास किया था?

उत्तर- महावीर ने नालंदा में चौदह वर्षावास किया था।

 

प्रश्न 6.

तारानाथ कौन थे? उन्होंने नालंदा को किसकी जन्मभूमि बताया है?

उत्तर-

तिब्बत के विद्वान इतिहास लेखक लामा तारानाथ तिब्बत के निवासी थे और उनके अनुसार नालंदा सारिपुत्र की जन्मभूमि थी।

 

प्रश्न 7. एक जीवंत विद्यापीठ के रूप में नालंदा कब विकसित हुआ?

उत्तर-

नालंदा की प्राचीनता की अनुश्रुति बुद्ध, अशोक दोनों से संबंधित है; किन्तु एक प्राणवंत विद्यापीठ के रूप में उसके जीवन का आरंभ लगभग गुप्तकाल में हुआ।

 

प्रश्न 8. फाह्यान कौन थे? वे नालंदा कब आए थे? ।

उत्तर-

फाह्यान चीनी यात्री थे जो चौथी शती में नालंदा आये थे। उन्होंने सारिपुत्र के जन्म और परिनिर्वाण स्थान पर निर्मित स्तूप के दर्शन किए।

 

 

 

 

प्रश्न 9. हर्षवर्दन के समय में कौन चीनी यात्री भारत आया था. उस समय नालंदा की दशा क्या थी?

उत्तर-

हर्षवर्द्धन के समय सातवीं सदी में युवानचांग भारत आए थे। उस समय नालंदा अपनी उन्नति के शिखर पर था।

 

 

प्रश्न 10.

नालंदा के नामकरण के बारे में किस चीनी यात्री ने किस ग्रंथ के आधार पर क्या बताया है?

उत्तर-

चीनी यात्री युवानयांग ने एक जातक कहानी का हवाला देते हुए बताया है कि नालंदा का यह नाम इसलिए पड़ा था कि यहाँ अपने पूर्व-जन्म में उत्पन्न भगवान बुद्ध को तृप्ति नहीं होती थी। (न-अल-दा)

 

प्रश्न 11.

नालंदा विश्वविद्यालय का जन्म कैसे हुआ?

उत्तर-

नालंदा विश्वविद्यालय का जन्म जनता के उदार दान से हुआ। कहा जाता है कि इसका आरंभ पाँच सौ व्यापारियों के दान से हुआ था, जिन्होंने अपने धन से भूमि खरीदकर बुद्ध को दान में दी थी।

 

प्रश्न 12.

यशोवर्मन के शिलालेख में वर्णित नालंदा का अपने शब्दों में चित्रण कीजिए।

उत्तर-

आठवीं सदी के यशोवर्मन के शिलालेख में नालंदा का बड़ा भव्य वर्णन किया गया है। यहाँ के विहारों की पंक्तियों के ऊँचे-ऊँचे शिखर आकाश में मेघों को छूते थे। उनके चारों ओर नीले जल से भरे हुए सरोवर थे, जिनमें सुनहरे और लाल कमल तैरते थे, बीच-बीच में सघन आम्रकुंजों की छाया थी। यहाँ के भवनों के शिल्प और स्थापत्य को देखकर आश्चर्य होता था। उनमें अनेक प्रकार के अलंकरण और सुन्दर मूर्तियाँ थीं। यों तो भारत वर्ष में अनेक संधाराम हैं, किन्तु नालंदा उन सबमें अद्वितीय है।

 

 

प्रश्न 13.

इत्सिंग कौन था? उसने नालंदा के बारे में क्या बताया है?

उत्तर-

इरिसंग, चीनी यात्री था। उसके समय में नालंदा विहार में तीन सौ बड़े कमरे और आठ मंडप थे। पुरातत्व विभाग की खुदाई में नालंदा विश्वविद्यालय के जो अवशेष यहाँ प्राप्त हुए हैं उनसे इन वर्णनों की सच्चाई प्रकट होती है।

 

 

प्रश्न 14.

विदेशों के साथ नालंदा विश्वविद्यालय के संबंध का कोई एक उदाहरण दीजिए।

उत्तर-

विदेशों के साथ नालंदा विश्वविद्यालय का जो संबंध था, उसका स्मारक एक ताम्रपत्र खुदाई में मिला है। इससे ज्ञात होता है कि सुवर्ण दीप (सुमात्रा) के शासक शैलेन्द्र सम्राट श्री बालपुत्रदेव ने मगध के सम्राट देवपालदेव के पास अपना दूत भेजकर यह प्रार्थना की कि उनकी ओर से पाँच सौ गाँवों का दान नालंदा विश्वविद्यालय को दिया जाय। ताम्रपत्र के अनुसार नालंदा के गुणों से आकृष्ट होकर यवद्वीप के सम्राट बालपुत्र ने भगवान बुद्ध के प्रति भक्ति प्रदर्शित करते हुए नालंदा में एक बड़े विहार का निर्माण करवाया।

 

प्रश्न 15.

नालंदा में किन पांच विषयों की शिक्षा अनिवार्य थी?

उत्तर-

नालंदा का शिक्षाक्रम बड़ी व्यावहारिक बुद्धि से तैयार किया गया था। मूल रूप में पाँच विषयों की शिक्षा वहाँ अनिवार्य थी-

शब्द विद्या या व्याकरण, जिससे भाषा का सम्यक ज्ञान प्राप्त हो सके।

हेतु विद्या या तर्कशास्त्र, जिससे विद्यार्थी अपनी बुद्धि की कसौटी पर प्रत्येक बात को परख सके।

चिकित्सा विद्या जिसे सीखकर छात्र स्वयं स्वस्थ रह सकें एवं दूसरों को भी निरोग बना सकें।

शिल्प विद्या, एक न एक शिल्प को सीखना यहाँ अनिवार्य था जिससे छात्रों में व्यवहारिक और आर्थिक जीवन की स्वतंत्रता आ सके।

इसके अतिरिक्त अपनी रुचि के अनुसार लोग धर्म और दर्शन का अध्ययन करते थे।

 

प्रश्न 16.

नालंदा के कुछ प्रसिद्ध विद्वानों की सूची बनाइए।

उत्तर-

जिस समय धर्मपाल इस संस्था के कुलपति थे उस समय शीलभद्र, ज्ञानचंद, प्रभामित्र, स्थिरमति, गुणमति आदि अन्य आचार्य युवानचांग के समकालीन थे।

 

प्रश्न 17.

शीलभद्र से युवानचांग (ह्वेनसांग) की क्या बातचीत हुई?

उत्तर-

जब युवानचांग नालंदा से विदा होने लगे, तब आचार्य शीलभद्र एवं अन्य भिक्षुओं ने उनसे यहाँ रह जाने के लिए अनुरोध किया। युवानचांग ने उत्तर में यह वचन कहे-“यह देश बुद्ध की जन्मभूमि है, इसके प्रति प्रेम न हो सकना असंभव है। लेकिन यहाँ आने का मेरा उद्देश्य यही था कि अपने भाइयों के हित के लिए मैं भगवान के महान धर्म की खोज करूँ। मेरा यहाँ आना बहुत ही लाभप्रद सिद्ध हुआ है। अब यहाँ से वापस जाकर मेरी इच्छा है कि जो मैंने पढा-सना है, उसे दूसरों के हितार्थ बताऊँ और अनुवाद रूप में लाऊँ, जिसके फलस्वरूप अन्य मनुष्य भी आपके प्रति उसी प्रकार कृतज्ञ हो सकें जिस प्रकार मैं हुआ हूँ।” इस उत्तर से शीलभद्र को बड़ी प्रसन्नता हुई और उन्होंने कहा-“यह उदात्त विचार तो बोधिसत्वों जैसे हैं। मेरा हृदय भी तुम्हारी सदाशाओं का समर्थन करता है।”

 

प्रश्न 18.

विदेशों में ज्ञान-प्रसार के क्षेत्र में नालंदा के विद्वानों के प्रयासों के विवरण दीजिए।

उत्तर-

पहले तो तिब्बत के प्रसिद्ध सम्राट स्त्रोंग छन गप्पो (630 ई.) ने अपने .. देश में भारती लिपि और ज्ञान का प्रचार करने के लिए अपने यहाँ के विद्वान थोन्मिसम्मोट को नालंदा भेजा, जिसने आचार्य देवविदसिंह के चरणों में बैठकर बौद्ध और ब्राह्मण साहित्य की शिक्षा प्राप्त की। इसके बाद आठवीं सदी में नालंदा के कुलपति आचार्य शांतिरक्षित तिब्बती सम्राट के आमंत्रण पर उस देश में गए। नालंदा के तंत्र विद्या के प्रमुख आचार्य कमनशील भी तिब्बत गए थे। इन विद्वानों में आचार्य : पद्मसंभव (749 ई.) और दीपशंकर श्री ज्ञान अतिश (980 ई.) के नाम उल्लेखनीय हैं।

प्रश्न 19.

ज्ञानदान की विशेषता क्या है?

उत्तर-

ज्ञान के क्षेत्र में जो दान दिया जाता है वह सीमा रहित और अनंत होता है,

न उसके बाँटने वालों को तृप्ति होती है और न उसे लेने वालों को। यही ज्ञानदान की विशेषता कही गई है।

 

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