Class 8 hindi chapter 7 question answer Bihar board

Class- 8th 

                         प्रश्न – अभ्यास

पाठ से-

1. गाँव के किसान सिरचन को क्या समझते थे ?

उत्तर – गाँव के किसान सिरचन को कामचोर , बेकार का आटगी धीरे – धीरे काम करने वाला नाप – तौलकर काम करने वाला , मुफ्त में मजदूरी पाने वाला समझते थे ।SVM CLASSES SPECIAL BIHAR BOARD 

2. इस कहानी में आये हुए विभिन्न यात्रों के नाम लिखें ।

उत्तर – इस कहानी के नायक सिरचन के साथ – साथ रेणु जी , रेणु जी की माँ , चाची , मझली भाभी , मानू दीदी इत्यादि पात्र हैं ।

3. सिरचन को पान का बीड़ा किसने दिया था ?

उत्तर – मानू दीदी ने ।

4. आपके विचार से सिरचन का महत्व कम क्यों हो गया?

  1. उत्तर- मेरे विचार से सिरचन का महत्व कम इसलिए हो गया क्योंकि सिरचन के हाथ की कारीगरी चिक और शीतलपाटी बनाने में थी जिसका महत्व अब गाँव में नहीं रह गया था। उसे और किसी कार्य में मन भी नहीं लगता था।

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5. सिरचन चिक और शीतलपाटी स्टेशन पर ले जाकर मानू को देता है। इससे उसकी किस विशेषता का पता चलता है?

Ans- इससे उसकी उदारता का पता चलता है। इससे यह भी पता चलता है कि वह लेखक के घर से बहुत लगाव रखता था ।

6. निम्नलिखित गद्यांशों को कहानी के अनुसार क्रमबद्ध रूप में सजाइए ।

उत्तर– ( ख ) मुझे याद है …….क्या – क्या लगेगा ।

( क ) उस बार मेरी सबसे छोटी ………बिना आएगी मानू तो ।

( ग ) मान फूट – फूट कर ………देख रहा था ।

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5. निम्नलिखित वाक्यों के सामने सही या गलत का निशान लगाइए ।

प्रश्नोत्तर –

( क ) सिरचन कामचोर था । ( x )

( ख ) सिरचन अपने काम में दक्ष था ।( √)

( ग ) सिरचन बात करने में भी कारीगर था ।(√)

( घ ) सिरचन वकील था । ( x )

6. कहानी के किन – किन प्रसंगों से ऐसा प्रतीत होता है कि सिरचन अपने काम को ज्यादा तरजीह देता था उल्लेख कीजिए ।

उत्तर – कहानी के अनेक प्रसंगों से प्रतीत होता है कि सिरचन अपने काम को ज्यादा तरहीज देता था । रेणु जी के घर मानू दीदी की विदाई के पूर्व शीतलपाटी और चिक बनाने के लिए सिरचन को बुलाया जाता है । वह अपने काम में तन्मय हो गया । अगर उसकी तन्मयता में विघ्न डाले तो वह गेहूँमन साँप की तरह फुफकार उठता और काम छोड़कर चला जाता । फिर वह काम अधूरा ही रह जाता था । कहानी प्रसंग में दूसरे दिन जब वह अपने काम में लगा तो उसे खाने – पीने की सुधि ही नहीं रही । उसे चुडा – गुड़ खाने को मिलता है । वह केवल चुड़ा फाँक रहा है । गुड़ का ठेला या ही अछुता पड़ा है । चुड़ा चबाते समय भी वह अपने काम में तन्मय है । उसे कुछ सुधि नहीं है कि चुड़ा के साथ गुड़ भी खाना है । इससे स्पष्ट है कि वह भोजन की अपेक्षा अपने काम को ज्यादा तरजीह देता था ।

7. इस कहानी में कौन – सा यात्र आपको सबसे अच्छा लगा और क्यों ?

उत्तर – इस कहानी में हमें सबसे अच्छा पात्र सिरचन लगा क्योंकि सिरचन मानवीय गुण से भरा है । वह जिस काम को करता है । प्रेम से करता है । उसको कारीगरी के कायल दूर – दूर गाँव के लोग थे । वह स्वाभिमानी और सम्मानप्रिय व्यक्ति है । उसे खाना जो भी मिले वह अपने काम को तरजीह देता था । किसी की जली – कटी बातें सुनकर या अपने कारीगरी के प्रति आरोपों को सुनकर वह काम छोड़ देता । जिस काम को छोड़ देता वह काम अधूरा ही रह जाता । कहानी के अंत में सिरचन की आत्मीय गुण चरम पर दिखता है जब मानू विदाई होकर स्टेशन पर गाड़ी में सवार है । गाड़ी खुलने के समय में सिरचन दौड़ता – हाँफता गट्ठर मानू दीदी को देते हुए कहता है दीदी यह हमारे तरफ से शीतलपाटी , चिक और कुश की आसानी है |

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पाठ से आगे

1. आपकी दृष्टि में सिरचन द्वारा चिक एवं शीतलपाटी स्टेशन पर मानू को देना कहाँ तक उचित था ।

उत्तर – सिरवन के द्वारा स्टेशन पर मानू को विदाई के समय शीतलपाटी , चिक आदि उपहार देना ही उचित था । यदि वह घर पर जाता उपहार देने तो कहानी में सिरचन के आत्मीय गुण में कमी आ जाती । फिर उसे तो गाँव वालों से ठेस लग चुका था । एक सफल कारीगर सिरचन अपनी कला का महत्व देते हुए स्वनिर्मित वस्तुओं का उपहार मानू को स्टेशन पर प्रदान करती है जो उपयुक्त समय था ।

2. काम के बदले थोड़ा – सा अनाज या चंद रुपये देकर क्या किसी मजदूर की मजदूरी का मूल्य चुकाया जा सकता है । इस सम्बन्ध में अपना मत व्यक्त कीजिए ।

उत्तर – मजदूरों को मजदूरी के बदले थोड़ा अनाज या चंद रुपये देकर उसके मजदूरी कामूल्य नहीं चुकाया जा सकता है । क्योंकि किसी मजदूर या कारीगर की कला अमूल्य होती है । फिर अन्न या रुपये से मजदूरी का मूल्य कैसे चुकाया जा सकता है । किसी मजदूर या कारीगर के लिए उसकी मजदूरी का सबसे बड़ा मूल्य है । उसकी कला के प्रति आभार व्यक्त करना , कारीगर का सम्मान करना ।

3. इस कहानी का अंत किये गये अंत से अलग और क्या हो सकता है ? सोचकर लिखिए ।

उत्तर – किसी कहानी का अंत किये गये अंत से अलग हो सकता है । लेकिन ” ठेस ” शीर्षक कहानी का अंत चरमोत्कर्ष पर जाकर हुआ है क्योंकि सिरचन जो अपनी कारीगरी को पुन : नहीं करने का शपथ लेता है वहीं सिरचन मानू के घर से विदा हो जाने पर रास्ते में अपना उपहार शीतलपाटी चिक और कुश का आसनी प्रदान कर आत्मीयता का अनोखा परिचय देता है । जबकि कहानीकार कहानी का अंत वही कर सकता था जहाँ वह शपथ लेता है कि मैं पुनः यह काम नहीं करूंगा । कहानीकार समझ जाता है कि एक कलाकार को ” ठेस ” लगा है । शीर्षक के आधार पर वही कहानी का अंत किया जा सकता था ।

व्याकरण

मुहावरे :-

ऐसा वाक्यांश , जो सामान्य अर्थ का बोध न कराकर किसी विलक्षण अर्थ का बोध कराए , मुहावरा कहलाता है । मुहावरे के प्रयोग से भाषा में सरलता , सरसता , चमत्कार और प्रवाह उत्पन्न होते हैं । जैसे – आँख का तारा ( बहुत प्यारा ) । नमन अपने माता – पिता के आँखों का तारा है ।

लोकोक्ति : –

लोकोक्ति के पीछे कोई कहानी या घटना होती है । उससे निकली बात बाद में लोगों की जुबान पर जब चल निकलती है तो लोकोक्ति ‘ हो जाती है । जैसे – एक पंथ दो काज ( एक काम से दूसरा काम हो जाना ) – पटना जाने से एक पंथ दो काज होंगे । कवि – सम्मेलन में कविता पाठ भी करेंगे और साथ ही जैविक उद्यान भी देखेंगे । आइए इसके साथ ही कुछ ऐसी बातों को भी जानें , जिससे मुहावरे और लोकोक्तियों को समानताओं और असमानताओं का पता भी चले ।

1. मुहावरों और लोकोक्तियों में पर्यायवाची शब्द नहीं रखे जा सकते । यही कारण है कि इनका अनुवाद संभव नहीं ।

2. लोकोक्ति स्वतंत्र वाक्य होते हैं , जबकि मुहावरे वाक्यांश होते हैं ।

1. इन मुहावरों का वाक्यों में प्रयोग करते हुए अर्थ स्पष्ट कीजिए |

प्रश्नोत्तर-

( क ) कान मत देना – उसके बातों पर कान मत देना ।

( ख ) दम मारना – बीमार व्यक्ति दम मार – मारकर चलता है ।

( ग ) मुँह में लगाम न होना – श्याम के मुँह में लगाम नहीं है ।

( घ ) सिर चढ़ाना – मदन अपने पत्नी को सिर चढ़ा लिया है ।

गतिविधि

1. स्टेशन पर , सिरचन का पहुँचना एवं वहाँ मानू को सामग्री देने के अंश को पढ़ने के बाद जो चित्र आपके मस्तिष्क में उभरते उसे चित्र बनाकर वर्ग कक्ष में प्रदर्शित कीजिए ।

उत्तर – छात्र स्वयं करें ।

2. स्थानीय स्तर पर शीतलपाटी , चिक , आसनी की तरह कोई अन्य वस्तु प्रचलित हो तो उसे बनाकर वर्गक

क्ष में दर्शाइए ।

उत्तर — छात्र स्वयं करें ।

पूरी कहानी को पढ़िए

खेती-बारी के समय, गाँव के किसान सिरचन की गिनती नहीं करते। लोग उसको बेकार ही नहीं, ‘बेगार’ समझते हैं। इसलिए खेत-खलिहान की मजदूरी के लिए कोई नहीं बुलाने जाता है सिरचन को। क्या होगा उसको बुलाकर ? दूसरे मजदूर खेत पहुँचकर एक-तिहाई काम कर चुकेंगे, तब कहीं सिरचन राय हाथ में खुरपी डुलाता हुआ दिखाई पड़ेगा। पगडंडी पर तौल-तौलकर पाँव रखता हुआ, धीरे-धीरे। मुफ्त में मजदूरी देनी हो तो और बात है।“आज सिरचन को मुफ्तखोर, कामचोर या चटोर कह ले कोई। एक समय था, जबकि उसकी मड़ैया के पास बड़े-बड़े बाबू लोगों की सवारियाँ बँधी रहती थीं। उसे लोग पूछते ही नहीं थे, उसकी खुशामद भी करते थे । अरे, सिरचन भाई ! अब तो तुम्हारे ही हाथ में यह कारीगरी रह गई है सारे इलाके में। एक दिन का समय निकालकर चलो । कल बड़े भैया की चिट्ठी आई है शहर से। सिरचन से एक जोड़ा चिक बनवाकर भेज दो ।मुझे याद है मेरी माँ जब कभी सिरचन को बुलाने के लिए कहती, मैं पहले ही पूछ लेता भोग क्या-क्या लगेगा ?माँ  हँसकर कहती, जा-जा, बेचारा मेरे काम में पूजा-भोग की बात नहीं उठाता कभी। ब्राह्मण टोली के पंचानन्द चौधरी के छोटे लड़के को एक बार मेरे सामने ही बेपानी कर दिया था सिरचन ने तुम्हारी भाभी नाखून से खाँटकर तरकारी परोसती है। और, इमली का रस डालकर कढ़ी तो हम कहार-कुम्हारों की घरवाली बनाती है। तुम्हारी भाभी ने कहाँ सीखा ? इसलिए, सिरचन को बुलाने के पहले मैं माँ से पूछ लेता सिरचन को देखते ही माँ हुलसकर कहती-आओ सिरचन। आज नेनू मथ रही थी, तो तुम्हारी याद आई। घी की डाड़ी (खखखोरन) के साथ चूड़ा तुमको बहुत पसन्द है न। और बड़ी बेटी ने ससुराल से संवाद भेजा है, उसकी ननद रूठी हुई है, मोथी की शीतलपाटी के लिए ।

सिरचन अपनी पनियायी जीभ को सम्भालकर हँसता। घी की सोंधी सुगन्ध सूँघकर ही आ रहा हूँ, भाभी। नहीं तो इस शादी-ब्याह के मौसम में दम मारने की भी छुट्टी कहाँ मिलती है। सिरचन जाति का कारीगर है। एक-एक मोथी और पटेर को हाथ में लेकर बड़े जतन से उसकी कुच्ची बनाता। फिर, कुच्चियों को रँगने से लेकर सुतली सुलझाने में पूरा दिन समाप्त। “काम करते समय उसकी तन्मयता में जरा भी बाधा पड़ी कि गेहुँअन साँप की तरह फुफकार उठता। फिर किसी दूसरे से करवा लीजिए काम। सिरचन मुँहजोर है, कामचोर नहीं ।

बिना मजदूरी के पेटभर भात पर काम करनेवाला कारीगर। दूध में कोई मिठाई न मिले, कोई बात नहीं किन्तु बात में जरा भी झाल वह नहीं बरदाश्त कर सकता।

सिरचन को लोग चटोर भी समझते हैंतली बघारी हुई तरकारी, दही की कढ़ी, मलाईवाला दूध, इन सबका प्रबंध पहले कर लो, तब सिरचन को बुलाओ; दुम हिलाता हुआ हाजिर हो जाएगा। खाने-पीने में चिकनाई की कमी हुई कि काम की सारी चिकनाई खत्म। अधूरा रखकर उठ खड़ा होगा। आज तो अब अधकपाली दर्द से माथा टनटना रहा है। थोड़ा-सा रह गया है, किसी दिन आकर पूरा कर दूँगा। किसी दिन’ माने कभी नहीं।मोथी घास और पटेर की रंगीन शीतलपाटी, बाँस तीलियों की झिलमिलाती चिक, सतरंगे डोर के मोढ़े, भूसी चुन्नी रखने के लिए मूँज की रस्सी के बड़े-बड़े जाले, हलवाहों के लिए ताल के सूखे पतों की छतरी टोपी तथा इसी तरह के बहुत-से काम हैं, जिन्हें सिरचन के सिवा गाँव में और कोई नहीं जानता। यह दूसरी बात है कि अब गाँव में ऐसे कामों को बेकाम का काम समझते हैं लोग। बेकाम का काम, जिसकी मजदूरी में अनाज या पैसे देने की कोई जरूरत नहीं। पेट-भर खिला दो, काम पूरा होने पर एकाध पुराना धुराना कपड़ा देकर विदा करो। वह कुछ भी नहीं बोलेगा।…..

कुछ भी नहीं बोलेगा, ऐसी बात नहीं। सिरचन को बुलानेवाले जानते हैं, सिरचन बात करने में भी कारीगर है। महाजन टोले के भज्जू महाजन की बेटी सिरचन की बात सुनकर तिलमिला उठी थी-ठहरो। मैं माँ से जाकर कहती हूँ। इतनी बड़ी बात !

बड़ी बात ही है बिटिया। बड़े लोगों की बात ही बड़ी होती है। नहीं तो दो-दो पटेर की पाटियों का काम सिर्फ खँसारी का सत्तू खिलाकर कोई करवाए भला? यह तुम्हारी माँ ही कर सकती है बबुनी। सिरचन ने मुस्कुराकर जवाब दिया था।उस बार मेरी सबसे छोटी बहन की विदाई होने वाली थी। पहली बार ससुराल जा रही थी। मानू के दूल्हे ने पहले ही बड़ी भाभी को खत लिखकर चेतावनी दे दी है-मानू के साथ मिठाई की पतीली न आवे, कोई बात नहीं। तीन जोड़ी फैशनेबल चिक और पटेर की दो शीतलपाटियों के बिना आएगी मानू तो….. भाभी ने हँसकर कहा-बैरंग वापस ! इसलिए, एक सप्ताह पहले से ही सिरचन को बुलाकर काम पर तैनात करवा दिया था  माँ ने। देख सिरचन, इस बार नई धोती दूँगी; असली मोहर छापवाली घोती। मन लगाकर ऐसा काम करो कि देखनेवाले देखकर देखते ही रह जाएँ।

पान-जैसी पतली छुरी से बाँस की तीलियाँ और कमानियों को चिकनाता हुआ सिरचन अपने काम में लग गया। रंगीन सुतलियों में झब्बे डालकर वह चिक बुनने बैठा। डेढ़ हाथ की बुनाई देखकर ही लोग समझ गए कि इस बार एकदम नए फैशन की चीज बन रही है, जो पहले कभी नहीं बनी।मँझली भाभी से नहीं रहा गया। परदे की आड़ से बोली-पहले ऐसा जानती कि मोहर छापवाली धोती देने से ही अच्छी चीज बनती है तो भैया को खबर भेज देती।काम में व्यस्त सिरचन के कानों में बात पड़ गई। बोला-मोहर छापवाली धोती के साथ रेशमी कुर्त्ता देने पर भी ऐसी चीज नहीं बनती बहुरिया ! मानू दीदी काकी की सबसे छोटी बेटी है…. मानू दीदी का दूल्हा अफसर आदमी है। मंझली भाभी का मुँह लटक गया। मेरी चाची ने फुसफुसाकर कहा-किससे बात करती है बहू? मोहर छापवाली धोती नहीं, मुँगिया लड्डू। बेटी की विदाई के समय रोज मिठाई जो खाने को मिलेगी देखती है न !

दूसरे दिन चिक की पहली पाँती में सात तारे जगमगा उठे, सात रंग के। सतभैया तारा । सिरचन जब काम में मग्न रहता है तो उसकी जीभ जरा बाहर निकल आती है, ओठ पर। अपने काम में मग्न सिरचन को खाने-पीने की सुधि नहीं रहती। चिक में सुतली के फंदे डालकर उसने पास पड़े सूप पर निगाह डाली-चिउरा और गुड़ का एक सूखा ढेला। मैंने लक्ष्य किया, सिरचन की नाक के पास दो रेखाएँ उभर आईं। दौड़कर माँ के पास गया-माँ, आज सिरचन को कलेवा किसने दिया है, सिर्फ चिउरा और गुड़?

माँ रसोईघर के अन्दर पकवान आदि बनाने में व्यस्त थी। बोली-मैं अकेले कहाँ-कहाँ क्या-क्या देख्खूँ………..अरी मँझली, सिरचन को बुंदिया क्यों नहीं देती?

– बुंदिया मैं नहीं खाता, काकी! सिरचन के मुँह में चिउरा भरा हुआ था। गुड़ का ढेला सूप में एक किनारे पड़ा रहा, अछूता।

माँ की बोली सुनते ही मँझली भाभी की भौंहें तन गई। मुट्ठी भर बुंदिया सूप में फेंककर चली गई।सिरचन ने पानी पीकर कहा-मँझली बहूरानी अपने मैके से आई हुई मिठाई भी इसी तरह हाथ खोलकर बाँटती है क्या? बस, मँझली भाभी अपने कमरे में बैठकर रोने लगी। चाची ने माँ के पास जाकर कहा-छोटी जाति के आदमी का मुँह भी छोटा होता है। मुँह लगाने से सिर पर चढ़ेगा ही। किसी की नैहर-ससुराल की बात क्यों करेगा वह ?

मँझली भाभी माँ की दुलारी बहू है। माँ तमककर बाहर आई सिरचन तुम काम करने आए हो, अपना काम करो। बहुओं से बतकुट्टी करने की क्या जरूरत? जिस चीज की जरूरत हो, मुझसे कहो।

सिरचन का मुँह लाल हो गया। उसने कोई जवाब नहीं दिया। बाँस में टँगे हुए अधूरे चिक में फंदे डालने लगा।

मानू पान सजाकर बाहर बैठकखाने में भेज रही थी। चुपके से एक पान का बीड़ा सिरचन को देती हुई बोली, इधर-उधर देखकर सिरचन दादा, काम-काज का घर। पाँच तरह के लोग पाँच किस्म की बात करेंगे। तुम किसी की बात पर कान मत दो।

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सिरचन ने मुस्कुराकर पान का बीड़ा मुँह में ले लिया। चाची अपने कमरे से निकल रही थी। सिरचन को पान खाते देखकर अवाक् हो गई। सिरचन ने चाची को अपने ओर अचरज से घूरते देखकर कहा-छोटी चाची, ज़रा अपनी डिबिया का गमकौआ ज़र्दा तो खिलाना। बहुत दिन हुए।

 

चाची कई कारणों से जली-भुनी रहती थी, सिरचन से। गुस्सा उतारने का ऐसा मौका फिर नहीं मिल सकता। झनकती हुई बोली-मसखरी करता है? तुम्हारी बढ़ी हुई जीभ में आग लगे। घर में भी पान और गमकौआ ज़र्दा खाते हो ?……… चटोर कहीं के। मेरा कलेजा धड़क बस सिरचन की उँगलियों में सुतली के फंदे पड़ गए मानो, कुछ देर तक वह चुपचाप बैठा पान को मुँह में घुलाता रहा। फिर अचानक उठकर पिछवाड़े थूक आया। अपनी छुरी, हँसिया वगैरह समेट-सम्हालकर झोले में रखा। टँगी हुई अधूरी चिक पर एक निगाह डाली और हनहनाता हुआ आँगन से बाहर निकल गया।

चाची बड़बड़ाई-अरे बाप रे बाप! इतनी तेजी! कोई मुफ्त में तो काम नहीं करता। आठ रुपये में मोहर छापवाली धोती आती है। इस मुँहझौंसे के न मुँह में लगाम है, न आँख में शील। पैसा खर्च करने पर सैकड़ों चिकें मिलेंगी। बाँतर टोली की औरतें सिर पर गट्ठर लेकर गली-गली मारी फिरती हैं।

मानू नहीं बबेली। चुपचाप अधूरी चिक को देखती रही।……… सातों तारे मन्द पड़ गए ! माँ बोली जाने दे बेटी। जी छोटा मत कर, मानू। मेले से  खरीदकर भेज दूँगी।

मानू को याद आई, विवाह में सिरचन के हाथ की शीतलपाटी दी थी माँ ने। ससुरालवालों ने न जाने कितनी बार खोलकर दिखाया था पटना और कलकत्ता के मेहमानों को। वह उठकर बड़ी भाभी के कमरे में चली गई।

मैं सिरचन को मनाने गया। देखा, एक फटी हुई शीतलपाटी पर लेटकर वह कुछ सोच रहा है। मुझे देखते ही बोला बबुआ जी! अब नहीं। कान पकड़ता हूँ, अब नहीं।……… मोहर छापवाली धोती लेकर क्या करूँगा? कौन पहनेगा?ससुरी खुद मरी, बेटे-बेटियों को भी ले गई अपने साथ। बबुआ जी, मेरे घरवाली जिंदा रहती तो मैं ऐसी दुर्दशा भोगता? यह शीतलपाटी उसी की बुनी हुई है। इस शीतलपाटी को छूकर कहता हूँ, अब यह काम नहीं करूँगा।………. गाँव-भर में तुम्हारी हवेली में मेरी कदर होती थी…..अब क्या? मैं चुपचाप लौट आया। समझ गया, कलाकार के दिल में ठेस लगी है। वह नहीं आ सकता।

बड़ी भाभी अधूरी चिक में रंगीन छीट का झालर लगाने लगी-यह भी बेजा नहीं दिखाई पड़ता । क्यों मानू!मानू कुछ नहीं बोली……….. बेचारी! किन्तु, मैं चुप नहीं रह सका चाची और मँझली भाभी की नजर न लग जाय इसमें भी। मानू को ससुराल पहुँचाने मैं ही जा रहा था।स्टेशन पर सामान मिलाते समय देखा, मानू बड़े जतन से अधूरी चिक को मोड़कर लिए जा रही है अपने साथ। मन-ही-मन सिरचन पर गुस्सा आया। चाची के सुर में सुर मिलाकर कोसने को जी हुआ।……. कामचोर, चटोर!गाड़ी आई। सामान चढ़ाकर मैं दरवाजा बंद कर रहा था कि प्लेटफार्म पर दौड़ते हुए सिरचन पर नजर पड़ी बबुआ जी। उसने दरवाजे के पास आकर पुकारा।क्या है? मैंने खिड़की से गरदन निकालकर झिड़की के स्वर में कहा। सिरचन ने पीठ पर लदे हुए बोझ को उतारकर मेरी ओर देखा दौड़ता आया हूँ………. दरवाजा खोलिए!मानू दीदी कहाँ है? एक बार देखूँ!

मैंने दरवाजा खोल दिया। सिरचन दादा! मानू इतना ही बोल

सकी। खिड़की के पास खड़े होकर सिरचन ने हकलाते हुए कहा-यह मेरी ओर से है। सब चीज है  दीदी। शीतलपाटी, चिक और एक जोड़ी आसनी कुश की। गाड़ी चल पड़ी।

 

मानू मोहर छापवाली धोती का दाम निकालकर देने लगी। सिरचन ने जीभ को दाँत से काटकर, दोनों हाथ जोड़ दिए।

 

मानू फूट-फूटकर रो रही थी। मैं बंडल को खोलकर देखने लगा ऐसी कारीगरी, ऐसी बारीकी, रँगीन सुतलियों के फंदों का ऐसा काम, पहली बार देख रहा था।

                                फणीश्वर नाथ ‘रेणु’ 

 

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8th hindi chapter 7

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Chapter 5👉 https://svmclassess.com/class-8-hindi-chapter-5-question-answer-bihar-board-hudru-ka-jalpratap-ka-question-answer/

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